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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

 

अध्याय - 10

 

निर्देशन एवं परामर्श के उपकरण एवं प्रविधियाँ

 

(Tools and Techniques of Guidance and Counselling)

 

 

 

प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

 

उत्तर -

 

बुद्धि का अर्थ एवं स्वरूप

 

बुद्धि एक अत्यंत जटिल मानसिक प्रक्रिया है। यद्यपि बुद्धि वास्तव में क्या है? इस पर विद्वानों एवं मनोवैज्ञानिकों में वाद-विवाद चलता आ रहा है। पुराने समय में जो छात्र अधिक किताबों को रट लिया करता था, उसको बुद्धिमान समझा जाता था। लेकिन वर्तमान समय में मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की व्याख्या करने की कोशिश की है। वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो बुद्धि के स्वरूप की व्याख्या कर सकना असम्भव है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप को निश्चित करने के लिए अलग- अलग परिभाषाएँ दी हैं।

 

कुछ महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिकों के द्वारा बुद्धि के सम्बन्ध में दी गई परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(1) टरमन के अनुसार, - "अमूर्त चिन्तन की योग्यता ही बुद्धि है।"
(2) गाल्टन के अनुसार, - "बुद्धि पहचानने तथा सुनने की शक्ति है।"
(3) स्टाउट के अनुसार, - "अवधान की शक्ति ही बुद्धि है।"
(4) स्पीयरमैन के अनुसार, - "बुद्धि के अन्तर्गत व्यकित की समान योग्यताओं का समावेश है।"
(5) बिनेट - बिनेट ने बुद्धि में तीन प्रकार की योग्यताओं को शामिल किया है-
    (i) अभिज्ञान,
    (ii) सामंजस्य एवं निर्देश, तथा
    (iii) आत्म-समीक्षा।
(6) थार्नडाइक के अनुसार, - "व्यक्ति में वस्तु-स्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया की योग्यता बुद्धि है।"
(7) बर्ट के अनुसार, - "बुद्धि अच्छी तरह निर्णय करने, समझने तथा तर्क करने की योग्यता है।" वैश्लर महोदय ने बुद्धि की सारगर्भित एवं उपयुक्त परिभाषा दी है।
(8) वैश्लर के अनुसार, - "बुद्धि व्यक्ति की शक्तियों का वह समुच्चय या संगोलीय क्षमता है जिससे व्यक्ति ध्येयपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिन्तन करता है तथा वातावरण के प्रति प्रभावपूर्ण समायोजन करता है।"
(9) स्टर्न के अनुसार, - "नई परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता ही बुद्धि है।"
(10) गैरेट के अनुसार, - "बुद्धि उन समस्याओं को हल करने की योग्यता है जिसमें ज्ञान और प्रतीक के उपयोग की आवश्यकता होती है। जैसे- शब्द, रेखाचित्र, समीकरण, सूत्र आदि।”

इस प्रकार से विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के विचारों में मतभेद होने के कारण बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में कुछ निश्चित कहना अत्यन्त कठिन कार्य है।

 

बेलार्ड महोदय के अनुसार - बुद्धि की विभिन्न परिभाषाओं को हम मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

(i) बुद्धि दो या तीन विभिन्न योग्यताओं का समूह है।
(ii) बुद्धि एक ऐसी योग्यता है जो सभी मानसिक प्रक्रियाओं में सहायता करती है।
(iii) बुद्धि सभी प्रकार की विशिष्ट योग्यताओं का निचोड़ है।

बुद्धि के प्रकार

 

थार्नडाइक ने बुद्धि के तीन निम्नलिखित प्रकार बताइए हैं-

 

(1) अमूर्त बुद्धि - थार्नडाइक ने सूक्ष्म या अमूर्त चिन्तन, कल्पना या संवेदन करने की योग्यता को अमूर्त बुद्धि माना है। इस प्रकार की बुद्धि का सम्बन्ध शब्द, अंक, प्रतीक, संकेत आदि से समस्याओं को हल करने से होता है।
(2) मूर्त या यान्त्रिक बुद्धि - जब हम मूर्त या स्थूल विषयों से सम्बन्धित कार्य करते हैं तो मूर्त या यान्त्रिक बुद्धि का सहारा लेते हैं। मूर्त बुद्धि निष्पादन कार्यों, यान्त्रिक कार्यों, गामक क्रियाओं आदि के क्षेत्र में प्राणी की सहायता करती है।
(3) सामाजिक बुद्धि - इस प्रकार की बुद्धि या मानसिक योग्यता के द्वारा व्यक्ति सामाजिक कार्य, व्यवहार तथा कुशलताओं को पूर्ण करता है। यह व्यक्ति को समाज के साथ समायोजन स्थापित करने में सहायता करती है।

 

बुद्धि की विशेषताएँ

 

बुद्धि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(i) बुद्धि सीखने में व्यक्ति की सहायता करती है।
(ii) बुद्धि जन्मजात वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त की हुई स्वाभाविक विशेषता है।
(iii) बुद्धि की सहायता से व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों, समस्याओं, संकटों एवं विषमताओं को आसानी से सामान्य कर लेता है।
(iv) वंशानुक्रम का बुद्धि पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
(v) बुद्धि तथा ज्ञान में बहुत गहरा सम्बन्ध होता है।
(vi) लिंग भेद के कारण बुद्धि में कोई अन्तर नहीं होता है।
(vii) बुद्धि व्यक्ति को चीजों को सीखने तथा अपने आपको ढालने में सहायता देती है। - (viii) बुद्धि जटिल व सूक्ष्म तत्त्वों को सुलझाने में सहायता देती है।
(ix) किशोरावस्था के मध्य तक बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है।
(x) बुद्धि परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि अधिकतर बालक औसत बुद्धि के हुआ करते हैं।

 

बुद्धि के सिद्धान्त

 

बुद्धि के सिद्धान्त हमें बुद्धि की संरचना का ज्ञान कराते हैं।

 

बुद्धि की संरचना के द्वारा ही हमें यह पता चलता है कि बुद्धि किन-किन तत्त्वों या कारकों (Factors) से मिलकर बनी है। बुद्धि के स्वरूप को समझने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने कई सिद्धान्तों का निर्माण किया है जो इस प्रकार से हैं-

 

(1) एक कारक सिद्धान्त - बुद्धि के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन बिनेट ने किया और इस सिद्धान्त को आगे बढ़ाने का श्रेय टरमन तथा स्टर्न नामक मनोवैज्ञानिकों को है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि बुद्धि एक विभाजित न की जा सकने वाली इकाई है तथा बुद्धि एक सर्वशक्तिशाली मानसिक प्रक्रिया है जो व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों का संचालन करती है। अतः इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि को एक कारक या शक्ति के रूप में माना गया है। आज इस सिद्धान्त को कोई नहीं मानता है।

 

(2) बुद्धि का द्वि-कारक सिद्धान्त - इस सिद्धान्त को बनाने का श्रेय स्पीयरमैन को है। इनके अनुसार बुद्धि में दो कारक शामिल हैं अथवा सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में दो प्रकार की मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता होती है- प्रथम, सामान्य मानसिक योग्यता दूसरी, विशिष्ट मानसिक योग्यता। सामान्य योग्यता सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में पाई जाती है, दूसरी ओर विशिष्ट, मानसिक योग्यता केवल विशिष्ट कार्यों से ही सम्बन्धित होती है।

 

(3) बुद्धि का समूह - कारक सिद्धान्त-बुद्धि के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थर्स्टन ने किया। थर्स्टन का यह सिद्धान्त बहुत महत्त्वपूर्ण, मात्रात्मक तथा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का है। उसने स्पीयरमैन के G और S कारकों की अवहेलना की है तथा इन कारकों के स्थान पर मानसिक संगठन के समूह कारकों को स्वीकार किया है। थर्स्टन के इस सिद्धान्त का समर्थन केली तथा बर्ट नामक मनोवैज्ञानिकों ने भी किया। यह सिद्धान्त कारक विश्लेषण पर आधारित है।

 

(4) बुद्धि का पदानुक्रमिक सिद्धान्त - बुद्धि के इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बर्ट एवं बर्नन हैं। इस सिद्धान्त में मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्त्व दिया गया है तथा G-factor को अन्य कारकों की अपेक्षा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। यह सिद्धान्त भी कारक विश्लेषण पर आधारित है।

 

(5) बहुकारक सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थार्नडाइक ने किया है। थार्नडाइक के अनुसार बुद्धि में उतनी ही शक्तियाँ या कारक सम्मिलित होते हैं जितनी की एक व्यक्ति प्रतिक्रिया सम्पादित करता है। थार्नडाइक ने अनेक प्रकार के कार्यों के अनुसार बुद्धि को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया है-

(i) मूर्त बुद्धि
(ii) अर्मूत बुद्धि
(iii) सामाजिक बुद्धि

थार्नडाइक का कहना है कि सरल बौद्धिक प्रक्रियाओं के द्वारा मानसिक संगठन का निर्माण होता है।

 

(6) गिलफोर्ड का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन गिलफोर्ड नामक मनोवैज्ञानिक ने किया। गिलफोर्ड ने तीन मौलिक मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि की संरचना का वर्णन किया है। ये तीन मौलिक मानसिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) संक्रिया,
(ii) विषय-वस्तु,
(iii) उत्पादन।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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